श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  13.1.17 
गौतमी नाम कौन्तेय स्थविरा शमसंयुता।
सर्पेण दष्टं स्वं पुत्रमपश्यद्‍गतचेतनम्॥ १७॥
 
 
अनुवाद
कुंतीनंदन! प्राचीन काल में गौतमी नाम की एक वृद्धा ब्राह्मणी थी जो सदैव शांति की खोज में लगी रहती थी। एक दिन उसने देखा कि उसके इकलौते पुत्र को साँप ने डस लिया है और वह बेहोश हो गया है।
 
Kunti Nandan! In ancient times there was an old Brahmin lady named Gautami who was always engaged in the pursuit of peace. One day she saw that her only son was bitten by a snake and he lost his consciousness.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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