श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  13.1.15 
भीष्म उवाच
परतन्त्रं कथं हेतुमात्मानमनुपश्यसि।
कर्मणां हि महाभाग सूक्ष्मं ह्येतदतीन्द्रियम्॥ १५॥
 
 
अनुवाद
भीष्म कहते हैं, "हे महामुने! आप तो सदैव पराधीन (काल, अदृश्य और ईश्वर के वश में) रहते हैं, फिर आप अपने को अच्छे और बुरे कर्मों का कारण क्यों मानते हैं? वास्तव में कर्मों का कारण क्या है, यह विषय तो अत्यंत सूक्ष्म और इन्द्रियों की पहुँच से परे है॥15॥
 
Bhishma says, "O great one! You are always dependent (under the control of time, the invisible and God), then why do you consider yourself the cause of good and bad deeds? In reality, what is the cause of deeds, this subject is very subtle and beyond the reach of the senses. ॥ 15॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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