वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्री महाभारत
»
पर्व 13: अनुशासन पर्व
»
अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन
»
श्लोक 11
श्लोक
13.1.11
न स पश्यति दुष्टात्मा त्वामद्य पतितं क्षितौ।
अत: श्रेयो मृतं मन्ये नेह जीवितमात्मन:॥ ११॥
अनुवाद
वह दुष्टात्मा आज तुम्हें इस प्रकार भूमि पर पड़ा हुआ नहीं देखता, इसलिए मैं उसकी यहीं मृत्यु को श्रेष्ठ मानता हूँ; परंतु अपने इस जीवन को नहीं॥11॥
That evil soul does not see you lying on the ground like this today, so I consider his death to be the best here; but not this life of mine.॥ 11॥
✨ ai-generated
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.