श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  13.1.11 
न स पश्यति दुष्टात्मा त्वामद्य पतितं क्षितौ।
अत: श्रेयो मृतं मन्ये नेह जीवितमात्मन:॥ ११॥
 
 
अनुवाद
वह दुष्टात्मा आज तुम्हें इस प्रकार भूमि पर पड़ा हुआ नहीं देखता, इसलिए मैं उसकी यहीं मृत्यु को श्रेष्ठ मानता हूँ; परंतु अपने इस जीवन को नहीं॥11॥
 
That evil soul does not see you lying on the ground like this today, so I consider his death to be the best here; but not this life of mine.॥ 11॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.