श्री महाभारत  »  पर्व 12: शान्ति पर्व  »  अध्याय 69: राजाके प्रधान कर्तव्योंका तथा दण्डनीतिके द्वारा युगोंके निर्माणका वर्णन  »  श्लोक 87-88
 
 
श्लोक  12.69.87-88 
दण्डनीत्यां यदा राजा त्रीनंशाननुवर्तते।
चतुर्थमंशमुत्सृज्य तदा त्रेता प्रवर्तते॥ ८७॥
अशुभस्य चतुर्थांशस्त्रीनंशाननुवर्तते।
कृष्टपच्यैव पृथिवी भवन्त्योषधयस्तथा॥ ८८॥
 
 
अनुवाद
जब राजा दण्डनीति का एक-चौथाई भाग त्यागकर केवल तीन भागों का पालन करता है, तब त्रेता युग का आरंभ होता है। उस समय पाप का एक-चौथाई भाग पुण्य के तीन भागों का पालन करता रहता है। उस अवस्था में धरती को जोतने और बोने से ही अन्न उत्पन्न होता है। औषधियाँ भी उसी प्रकार उत्पन्न होती हैं। 87-88
 
When the king abandons one-fourth of the Danda Niti and follows only three parts, then Treta Yuga begins. At that time, the fourth part of the evil keeps following the three parts of the virtue. In that state, food is produced only by ploughing and sowing the earth. Medicines are also produced in the same way. 87-88.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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