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श्लोक 12.69.73  |
किं तस्य तपसा राज्ञ: किं च तस्याध्वरैरपि।
सुपालितप्रजो य: स्यात् सर्वधर्मविदेव स:॥ ७३॥ |
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अनुवाद |
जो राजा अपनी प्रजा का भली-भाँति पालन करता है, उसे तप करने की क्या आवश्यकता है ? उसे यज्ञ करने की क्या आवश्यकता है ? वह तो स्वयं ही सब धर्मों का ज्ञाता है ॥ 73॥ |
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‘What has a king who has looked after his subjects well to do with penance? What is the need for him to perform sacrifices? He himself is the knower of all religions.’॥ 73॥ |
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