श्री महाभारत  »  पर्व 12: शान्ति पर्व  »  अध्याय 69: राजाके प्रधान कर्तव्योंका तथा दण्डनीतिके द्वारा युगोंके निर्माणका वर्णन  »  श्लोक 61
 
 
श्लोक  12.69.61 
यत: शङ्का भवेच्चापि भृत्यतोऽथापि मन्त्रित:।
पौरेभ्यो नृपतेर्वापि स्वाधीनान् कारयीत तान्॥ ६१॥
 
 
अनुवाद
यदि राजा को अपने किसी सेवक, मंत्री, नगर के नागरिक या पड़ोसी राजा के विषय में कोई संदेह हो तो उसे उचित उपाय करके उन सबको अपने वश में कर लेना चाहिए।
 
If the king has any doubts about any of his servants, ministers, citizens of the city or even about a neighbouring king, he should bring them all under his control by appropriate measures. 61.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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