श्री महाभारत  »  पर्व 12: शान्ति पर्व  »  अध्याय 69: राजाके प्रधान कर्तव्योंका तथा दण्डनीतिके द्वारा युगोंके निर्माणका वर्णन  »  श्लोक 56-57
 
 
श्लोक  12.69.56-57 
अर्थसंनिचयं कुर्याद् राजा परबलार्दित:।
तैलं वसा मधु घृतमौषधानि च सर्वश:॥ ५६॥
अङ्गारकुशमुञ्जानां पलाशशरवर्णिनाम्।
यवसेन्धनदिग्धानां कारयीत च संचयान्॥ ५७॥
 
 
अनुवाद
शत्रु सेना से पीड़ित राजा को धन-संग्रह तथा आवश्यक वस्तुओं का संग्रह करना चाहिए। घायलों के उपचार के लिए तेल, चर्बी, शहद, घृत, सभी प्रकार की औषधियाँ, अंगारे, कुशा, मूज, ढाक, बाण, लेखक, घास तथा विष से बुझे हुए बाण आदि का संग्रह करना चाहिए।
 
The king, afflicted by the enemy army, should accumulate wealth and store essential goods. For the treatment of the wounded, he should store oil, fat, honey, clarified butter, all kinds of medicines, embers, kusha, muj, dhak, arrows, writers, grass and arrows extinguished with poison. 56-57.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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