श्री महाभारत » पर्व 12: शान्ति पर्व » अध्याय 69: राजाके प्रधान कर्तव्योंका तथा दण्डनीतिके द्वारा युगोंके निर्माणका वर्णन » श्लोक 40 |
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| | श्लोक 12.69.40  | तदात्वेनायतीभिश्च निवसेद् भूम्यनन्तरम्।
प्रतीघातं परस्याजौ मित्रकार्येऽप्युपस्थिते॥ ४०॥ | | | अनुवाद | यदि वर्तमान में या भविष्य में किसी मित्र का कार्य आवश्यक हो, तो उसे त्यागकर अपने शत्रु के शत्रु की शरण लेनी चाहिए, जो राज्य क्षेत्र के निकट रहता हो और युद्ध में शत्रु पर आक्रमण करने के लिए तत्पर हो ॥40॥ | | If, in the present or future, a friend's work is required, then one should abandon him and take shelter of the enemy of his enemy, who lives near the kingdom's territory and is prepared to attack the enemy in war. ॥ 40॥ |
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