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श्लोक 12.69.100  |
प्रवर्तनाद् द्वापरस्य यथाभागमुपाश्नुते।
कले: प्रवर्तनाद् राजा पापमत्यन्तमश्नुते॥ १००॥ |
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अनुवाद |
द्वापर युग का विस्तार करके वह अपने पुण्य कर्मों के अनुसार कुछ समय तक स्वर्ग का सुख भोगता है; परंतु कलियुग की रचना करके राजा को घोर पाप का भागी होना पड़ता है ॥100॥ |
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By spreading the Dwapar Yuga, he enjoys the bliss of heaven for some time according to his good deeds; but by creating the Kali Yuga, the king has to incur extreme sins. ॥100॥ |
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