श्री महाभारत  »  पर्व 12: शान्ति पर्व  »  अध्याय 69: राजाके प्रधान कर्तव्योंका तथा दण्डनीतिके द्वारा युगोंके निर्माणका वर्णन  »  श्लोक 100
 
 
श्लोक  12.69.100 
प्रवर्तनाद् द्वापरस्य यथाभागमुपाश्नुते।
कले: प्रवर्तनाद् राजा पापमत्यन्तमश्नुते॥ १००॥
 
 
अनुवाद
द्वापर युग का विस्तार करके वह अपने पुण्य कर्मों के अनुसार कुछ समय तक स्वर्ग का सुख भोगता है; परंतु कलियुग की रचना करके राजा को घोर पाप का भागी होना पड़ता है ॥100॥
 
By spreading the Dwapar Yuga, he enjoys the bliss of heaven for some time according to his good deeds; but by creating the Kali Yuga, the king has to incur extreme sins. ॥100॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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