श्री महाभारत » पर्व 12: शान्ति पर्व » अध्याय 363: उञ्छ एवं शिलवृत्तिसे सिद्ध हुए पुरुषकी दिव्य गति » श्लोक 2 |
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| | श्लोक 12.363.2  | एष मूलफलाहार: शीर्णपर्णाशनस्तथा।
अब्भक्षो वायुभक्षश्च आसीद् विप्र: समाहित:॥ २॥ | | | अनुवाद | ये ब्राह्मण देवता कंद-मूल और फल खाते थे, सूखे पत्ते चबाते थे, जल या वायु पर निर्वाह करते थे और एकाग्र मन से सदैव ध्यान में मग्न रहते थे॥ 2॥ | | These Brahmin gods ate roots and fruits, chewed dry leaves or survived on water or air and remained always absorbed in meditation with a concentrated mind.॥ 2॥ |
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