श्री महाभारत  »  पर्व 12: शान्ति पर्व  »  अध्याय 300: सांख्य और योगका अन्तर बतलाते हुए योगमार्गके स्वरूप साधन,फल और प्रभावका वर्णन  »  श्लोक 58-61
 
 
श्लोक  12.300.58-61 
परं हि तद् ब्रह्म महन्महात्मन्
ब्रह्माणमीशं वरदं च विष्णुम्।
भवं च धर्मं च षडाननं च
यद् ब्रह्मपुत्रांश्च महानुभावान्॥ ५८॥
तमश्च कष्टं सुमहद् रजश्च
सत्त्वं विशुद्धं प्रकृतिं परां च।
सिद्धिं च देवीं वरुणस्य पत्नीं
तेजश्च कृत्स्नं सुमहच्च धैर्यम्॥ ५९॥
ताराधिपं खे विमलं सतारं
विश्वांश्च देवानुरगान् पितॄंश्च।
शैलांश्च कृत्स्नानुदधींश्च घोरान्
नदीश्च सर्वा: सवनान् घनांश्च॥ ६०॥
नागान् नगान् यक्षगणान् दिशश्च
गन्धर्वसंघान् पुरुषान् स्त्रियश्च।
परस्परं प्राप्य महान्महात्मा
विशेत योगी न चिराद् विमुक्त:॥ ६१॥
 
 
अनुवाद
महात्मन! यदि कोई योगसिद्ध महात्मा पुरुष चाहे तो तत्काल मुक्त होकर महान परब्रह्म स्वरूप को प्राप्त हो जाता है अथवा योगबल से ब्रह्माजी, वर देने वाले विष्णु, महादेवजी, धर्म, षट्मुख कार्तिकेय, ब्रह्माजी के महापुत्र सनकादि, क्लेशकारक तमोगुण, महान रजोगुण, शुद्ध सत्त्वगुण, मूल प्रकृति, वरुण की पत्नी सिद्धिदेवी, सम्पूर्ण तेज, महान धैर्य, तारों के साथ आकाश में चमकने वाले निर्मल तारापति चंद्रमा, विश्वेदेव, सर्प, पितर, सम्पूर्ण पर्वत, भयंकर समुद्र, सम्पूर्ण नदी समुदाय, वन, मेघ, सर्प, वृक्ष, यक्ष, दिशाएँ, गन्धर्व, समस्त नर-नारी - इनमें से प्रत्येक को प्राप्त करके उसके अन्दर प्रवेश कर सकता है। 58-61॥
 
Mahatman! If a Yogsiddha Mahatma man wishes, he immediately gets free and attains the form of the great Parabrahma or by the power of Yoga, he creates Lord Brahma, the boon-giving Vishnu, Mahadevji, Dharma, the six-faced Kartikeya, Brahmaji's great son Sankadi, the troublesome Tamogun, the great Rajogun, the pure Sattvagun, the original nature, Varuna's wife Siddhidevi, complete brilliance, great patience, the clear Tarapati moon that shines in the sky along with the stars, Vishvedev, snakes, ancestors, entire mountains, fierce ocean, entire river community, forests, clouds, snakes, trees, Yakshas, ​​directions, Gandharvas, all men and women - one can reach each of these and enter inside it. 58-61॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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