श्री महाभारत  »  पर्व 12: शान्ति पर्व  »  अध्याय 300: सांख्य और योगका अन्तर बतलाते हुए योगमार्गके स्वरूप साधन,फल और प्रभावका वर्णन  »  श्लोक 47-49
 
 
श्लोक  12.300.47-49 
कामं जित्वा तथा क्रोधं शीतोष्णे वर्षमेव च।
भयं शोकं तथा श्वासं पौरुषान् विषयांस्तथा॥ ४७॥
अरतिं दुर्जयां चैव घोरां तृष्णां च पार्थिव।
स्पर्शं निद्रां तथा तन्द्रीं दुर्जयां नृपसत्तम॥ ४८॥
दीपयन्ति महात्मान: सूक्ष्ममात्मानमात्मना।
वीतरागा महाप्राज्ञा ध्यानाध्ययनसम्पदा॥ ४९॥
 
 
अनुवाद
पृथ्वीनाथ! श्रेष्ठ! काम, क्रोध, शीत, ताप, वर्षा, भय, शोक, श्वास, मनुष्यों को प्रिय वस्तुएँ, दुर्दम्य असंतोष, तीव्र तृष्णा, स्पर्श, निद्रा और दुर्दम्य आलस्य को जीतकर, उत्तम बुद्धि वाला महात्मा योगी स्वाध्याय और ध्यान के द्वारा अपनी बुद्धि के द्वारा सूक्ष्म आत्मा का साक्षात्कार करता है।
 
Prithvinath! The best! By conquering lust, anger, cold, heat, rain, fear, sorrow, breath, things that are dear to humans, insurmountable dissatisfaction, intense craving, touch, sleep and insurmountable laziness, a Mahatma Yogi endowed with great and noble intellect, through self-study and meditation, realizes the subtle soul through his intellect.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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