श्री महाभारत  »  पर्व 12: शान्ति पर्व  »  अध्याय 283: शिवजीद्वारा दक्षयज्ञका भंग और उनके क्रोधसे ज्वरकी उत्पत्ति तथा उसके विविध रूप  »  श्लोक 57-58
 
 
श्लोक  12.283.57-58 
मरणे जन्मनि तथा मध्ये चाविशते नरम्।
एतन्माहेश्वरं तेजो ज्वरो नाम सुदारुण:॥ ५७॥
नमस्यश्चैव मान्यश्च सर्वप्राणिभिरीश्वर:।
अनेन हि समाविष्टो वृत्रो धर्मभृतां वर:॥ ५८॥
 
 
अनुवाद
भगवान महेश्वर का तेजस्वरूप यह ज्वर अत्यन्त भयंकर है । यह मृत्यु के समय, जन्म के समय तथा मध्यकाल में भी मनुष्य शरीर में प्रवेश करता है । यह सर्वशक्तिमान महेश्वर ज्वर समस्त प्राणियों के लिए पूज्य एवं आदरणीय है । इसने धर्मात्माओं में श्रेष्ठ वृत्रासुर के शरीर में प्रवेश किया था । 57-58॥
 
This fever, which is the bright form of Lord Maheshwar, is very severe. It enters the human body at the time of death, at the time of birth and also in between. This almighty Maheshwar fever is worshipable and respectable for all living beings. He had entered the body of Vritrasura, the best among the righteous souls. 57-58॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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