श्री महाभारत  »  पर्व 12: शान्ति पर्व  »  अध्याय 281: इन्द्र और वृत्रासुरके युद्धका वर्णन  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  12.281.3 
भवता कथितं ह्येतच्छ्रद्दधे चाहमच्युत।
भूयस्तु मे समुत्पन्ना बुद्धिरव्यक्तदर्शनात्॥ ३॥
 
 
अनुवाद
आपने यह घटना कही है; इसलिए मैं इसे सत्य मानता हूँ और इस पर विश्वास करता हूँ; क्योंकि आप सत्य से कभी विचलित नहीं होते; तथापि यह बात मेरी समझ में नहीं आई; इसलिए मेरे मन में पुनः प्रश्न उत्पन्न हो गया है॥3॥
 
You have described this incident; therefore I consider it to be true and believe in it; because you never deviate from the truth, however I have not understood this thing clearly; hence once again a question has arisen in my mind.॥ 3॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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