श्री महाभारत  »  पर्व 12: शान्ति पर्व  »  अध्याय 224: बलि और इन्द्रका संवाद, बलिके द्वारा कालकी प्रबलताका प्रतिपादन करते हुए इन्द्रको फटकारना  »  श्लोक 58
 
 
श्लोक  12.224.58 
यामेतां प्राप्य जानीषे राज्यश्रियमनुत्तमाम्।
स्थिता मयीति तन्मिथ्या नैषा ह्येकत्र तिष्ठति॥ ५८॥
 
 
अनुवाद
तुम यह मानते हो कि इस परम उत्तम राजलक्ष्मी को पाकर वे स्थायी रूप से तुम्हारे पास ही रहेंगी। तुम्हारी यह धारणा मिथ्या है, क्योंकि वे कभी एक स्थान पर बंधी नहीं रहतीं ॥58॥
 
You believe that after getting this supremely good Rajlakshmi, she will stay with you permanently. This notion of yours is false because she never stays tied to one place. ॥ 58॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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