श्री महाभारत  »  पर्व 12: शान्ति पर्व  »  अध्याय 151: ब्रह्महत्याके अपराधी जनमेजयका इन्द्रोत मुनिकी शरणमें जाना और इन्द्रोत मुनिका उससे ब्राह्मणद्रोह न करनेकी प्रतिज्ञा कराकर उसे शरण देना  »  श्लोक 1-2h
 
 
श्लोक  12.151.1-2h 
भीष्म उवाच
एवमुक्त: प्रत्युवाच तं मुनिं जनमेजय:।
गर्ह्यं भवान् गर्हयते निन्द्यं निन्दति मां पुन:॥ १॥
धिक्कार्यं मां धिक्कुरुते तस्मात् त्वाहं प्रसादये।
 
 
अनुवाद
भीष्म कहते हैं - राजन! जब इन्द्रौत ऋषि ने ऐसा कहा, तब जनमेजय ने उन्हें इस प्रकार उत्तर दिया - 'मुनि! मैं घृणा और तिरस्कार का पात्र हूँ; इसीलिए आप मेरा तिरस्कार करते हैं। मैं निंदा का पात्र हूँ; इसीलिए आप बार-बार मेरी निन्दा करते हैं। मैं तिरस्कार और अपमान का पात्र हूँ; इसीलिए मैं आपसे तिरस्कृत हो रहा हूँ और इसीलिए मैं आपको प्रसन्न करना चाहता हूँ।॥1 1/2॥
 
Bhishma says - King! When sage Indraut said this, Janamejaya replied to him like this - 'Muni! I am worthy of hatred and contempt; that is why you despise me. I am worthy of condemnation; that is why you repeatedly criticize me. I am worthy of rebuke and insult; that is why I am being rebuked by you and that is why I want to please you.॥ 1 1/2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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