श्री महाभारत  »  पर्व 12: शान्ति पर्व  »  अध्याय 140: भारद्वाज कणिकका सौराष्ट्रदेशके राजाको कूटनीतिका उपदेश  »  श्लोक 65
 
 
श्लोक  12.140.65 
मृदुरित्यवजानन्ति तीक्ष्ण इत्युद्विजन्ति च।
तीक्ष्णकाले भवेत् तीक्ष्णो मृदुकाले मृदुर्भवेत्॥ ६५॥
 
 
अनुवाद
यदि राजा सदैव नम्र रहे, तो प्रजा उसकी उपेक्षा करती है और यदि वह सदैव कठोर रहे, तो प्रजा उससे रुष्ट हो जाती है। अतः जब कठोरता का समय आए, तो उसे कठोर हो जाना चाहिए और जब नम्रता का अवसर आए, तो उसे नम्र हो जाना चाहिए ॥65॥
 
If the king is always gentle, people ignore him and if he is always harsh, people get annoyed with him. So, when the time comes to show harshness, he should be harsh and when the occasion arises to show gentleness, he should become gentle. ॥ 65॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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