श्री महाभारत  »  पर्व 12: शान्ति पर्व  »  अध्याय 13: सहदेवका युधिष्ठिरको ममता और आसक्तिसे रहित होकर राज्य करनेकी सलाह देना  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  12.13.9 
लब्ध्वापि पृथिवीं कृत्स्नां सहस्थावरजंगमाम्।
न भुङ्‍‍क्ते यो नृप: सम्यङ् निष्फलं तस्य जीवितम्॥ ९॥
 
 
अनुवाद
जो राजा इस सम्पूर्ण पृथ्वी को इसके जड़-चेतन प्राणियों सहित प्राप्त करके भी इसका सदुपयोग नहीं करता, उसका जीवन निष्फल है ॥9॥
 
The life of a king who, having obtained this entire earth along with its animate and inanimate creatures, does not make good use of it, is fruitless. ॥ 9॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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