श्री महाभारत  »  पर्व 12: शान्ति पर्व  »  अध्याय 13: सहदेवका युधिष्ठिरको ममता और आसक्तिसे रहित होकर राज्य करनेकी सलाह देना  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  12.13.7 
अथापि च सहोत्पत्ति: सत्त्वस्य प्रलयस्तथा।
नष्टे शरीरे नष्ट: स्याद्‍वृथा च स्यात् क्रियापथ:॥ ७॥
 
 
अनुवाद
इसके विपरीत यदि यह मान लिया जाए कि आत्मा शरीर के साथ ही जन्म लेती है और उसके नाश के साथ ही नष्ट हो जाती है, तो शरीर के नाश होने पर आत्मा भी नष्ट हो जाएगी; उस स्थिति में तो सम्पूर्ण वैदिक कर्ममार्ग ही व्यर्थ सिद्ध होगा ॥7॥
 
On the contrary, if it is believed that the soul is born along with the body and is destroyed along with its destruction, then the soul will also be destroyed when the body is destroyed; in that case, the entire Vedic path of action will prove to be futile. ॥ 7॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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