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श्लोक 12.125.2  |
संशयो मे महानेष समुत्पन्न: पितामह।
छेत्ता च तस्य नान्योऽस्ति त्वत्त: परपुरञ्जय॥ २॥ |
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अनुवाद |
हे शत्रु नगर को जीतने वाले पितामह! मेरे मन में एक महान् संशय उत्पन्न हो गया है। आपके अतिरिक्त और कोई भी इसका समाधान नहीं कर सकता॥ 2॥ |
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Grandfather, who conquered the enemy city! A great doubt has arisen in my mind. There is no one else except you who can resolve it.॥ 2॥ |
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