श्री महाभारत  »  पर्व 11: स्त्री पर्व  »  अध्याय 15: भीमसेनका गान्धारीको अपनी सफाई देते हुए उनसे क्षमा माँगना, युधिष्ठिरका अपना अपराध स्वीकार करना, गान्धारीके दृष्टिपातसे युधिष्ठिरके पैरोंके नखोंका काला पड़ जाना, अर्जुनका भयभीत होकर श्रीकृष्णके पीछे छिप जाना, पाण्डवोंका अपनी मातासे मिलना, द्रौपदीका विलाप, कुन्तीका आश्वासन तथा गान्धारीका उन दोनोंको धीरज बँधाना  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  11.15.4 
अधर्मेण जित: पूर्वं तेन चापि युधिष्ठिर:।
निकृताश्च सदैव स्म ततो विषममाचरम्॥ ४॥
 
 
अनुवाद
पहले भी उसने अधर्मपूर्वक राजा युधिष्ठिर को जीत लिया था और सदैव हम लोगों को धोखा दिया था, इसलिए मैंने भी उसके साथ अन्याय किया॥4॥
 
'Earlier he too had won over King Yudhishthira by unrighteous means and had always deceived us, so I too treated him unjustly.॥ 4॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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