श्री महाभारत  »  पर्व 11: स्त्री पर्व  »  अध्याय 15: भीमसेनका गान्धारीको अपनी सफाई देते हुए उनसे क्षमा माँगना, युधिष्ठिरका अपना अपराध स्वीकार करना, गान्धारीके दृष्टिपातसे युधिष्ठिरके पैरोंके नखोंका काला पड़ जाना, अर्जुनका भयभीत होकर श्रीकृष्णके पीछे छिप जाना, पाण्डवोंका अपनी मातासे मिलना, द्रौपदीका विलाप, कुन्तीका आश्वासन तथा गान्धारीका उन दोनोंको धीरज बँधाना  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  11.15.21 
गान्धार्युवाच
वृद्धस्यास्य शतं पुत्रान् निघ्नंस्त्वमपराजित:।
कस्मान्नाशेषय: कंचिद् येनाल्पमराधितम्॥ २१॥
 
 
अनुवाद
गांधारी बोली - बेटा ! तुम तो अपराजित योद्धा हो। इस वृद्ध राजा के सौ पुत्रों को मारते हुए तुमने उनमें से एक को भी जीवित क्यों नहीं छोड़ा, जिसने एक बहुत छोटा-सा अपराध किया था ?॥ 21॥
 
Gandhari said - Son! You are an undefeated warrior. While killing the hundred sons of this old king, why did you not leave alive even one of them who had committed a very small crime?॥ 21॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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