श्री महाभारत  »  पर्व 11: स्त्री पर्व  »  अध्याय 15: भीमसेनका गान्धारीको अपनी सफाई देते हुए उनसे क्षमा माँगना, युधिष्ठिरका अपना अपराध स्वीकार करना, गान्धारीके दृष्टिपातसे युधिष्ठिरके पैरोंके नखोंका काला पड़ जाना, अर्जुनका भयभीत होकर श्रीकृष्णके पीछे छिप जाना, पाण्डवोंका अपनी मातासे मिलना, द्रौपदीका विलाप, कुन्तीका आश्वासन तथा गान्धारीका उन दोनोंको धीरज बँधाना  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  11.15.20 
न मामर्हसि गान्धारि दोषेण परिशङ्कितुम्।
अनिगृह्य पुरा पुत्रानस्मास्वनपकारिषु।
अधुना किं नु दोषेण परिशङ्कितुमर्हसि॥ २०॥
 
 
अनुवाद
हे माता गान्धारी! तुम्हें मुझमें कोई दोष नहीं मानना ​​चाहिए। पहले जब हमने कोई अपराध नहीं किया था, तब भी तुमने अपने पुत्रों को हमें सताने से नहीं रोका; फिर अब मुझे क्यों दोष दे रही हो?॥ 20॥
 
Mother Gandhari! You should not suspect any fault in me. Earlier, when we had not committed any crime, you did not stop your sons from torturing us; then why are you blaming me now?॥ 20॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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