श्री महाभारत  »  पर्व 11: स्त्री पर्व  »  अध्याय 15: भीमसेनका गान्धारीको अपनी सफाई देते हुए उनसे क्षमा माँगना, युधिष्ठिरका अपना अपराध स्वीकार करना, गान्धारीके दृष्टिपातसे युधिष्ठिरके पैरोंके नखोंका काला पड़ जाना, अर्जुनका भयभीत होकर श्रीकृष्णके पीछे छिप जाना, पाण्डवोंका अपनी मातासे मिलना, द्रौपदीका विलाप, कुन्तीका आश्वासन तथा गान्धारीका उन दोनोंको धीरज बँधाना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  11.15.18 
केशपक्षपरामर्शे द्रौपद्या द्यूतकारिते।
क्रोधाद् यदब्रवं चाहं तच्च मे हृदि वर्तते॥ १८॥
 
 
अनुवाद
द्यूतक्रीड़ा के समय जब द्रौपदी के केश खींचे गए थे, उस समय क्रोध में आकर मैंने जो प्रतिज्ञा की थी, वह मेरे हृदय में सदैव ताजा रहती है ॥18॥
 
The vow I had made in anger at the time when Draupadi's hair was pulled during the game of dice is always fresh in my heart. ॥ 18॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.