वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्री महाभारत
»
पर्व 11: स्त्री पर्व
»
अध्याय 15: भीमसेनका गान्धारीको अपनी सफाई देते हुए उनसे क्षमा माँगना, युधिष्ठिरका अपना अपराध स्वीकार करना, गान्धारीके दृष्टिपातसे युधिष्ठिरके पैरोंके नखोंका काला पड़ जाना, अर्जुनका भयभीत होकर श्रीकृष्णके पीछे छिप जाना, पाण्डवोंका अपनी मातासे मिलना, द्रौपदीका विलाप, कुन्तीका आश्वासन तथा गान्धारीका उन दोनोंको धीरज बँधाना
»
श्लोक 16
श्लोक
11.15.16
रुधिरं न व्यतिक्रामद् दन्तोष्ठं मेऽम्ब मा शुच:।
वैवस्वतस्तु तद् वेद हस्तौ मे रुधिरोक्षितौ॥ १६॥
अनुवाद
माँ! शोक मत करो। वह रक्त मेरे दाँतों और होठों से होकर नहीं जा सका। सूर्यपुत्र यमराज जानते हैं कि केवल मेरे हाथ ही रक्त से लथपथ थे।
Mother! Do not grieve. That blood could not pass through my teeth and lips. Yamraj, the son of the Sun, knows that only my hands were soaked in blood.
✨ ai-generated
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.