श्री महाभारत  »  पर्व 1: आदि पर्व  »  अध्याय 174: वसिष्ठजीके अद्‍भुत क्षमा-बलके आगे विश्वामित्रजीका पराभव  »  श्लोक 17-18h
 
 
श्लोक  1.174.17-18h 
वसिष्ठ उवाच
देवतातिथिपित्रर्थं याज्यार्थं च पयस्विनी॥ १७॥
अदेया नन्दिनीयं वै राज्येनापि तवानघ।
 
 
अनुवाद
वशिष्ठ बोले, 'हे पापी! यह दुधारू नन्दिनी गाय देवताओं, अतिथियों, पितरों के पूजन तथा यज्ञों में आहुति देने के लिए हमारे पास रहती है। यदि हम तुम्हारा राज्य भी छीन लें, तो भी इसे नहीं दिया जा सकता।'
 
Vasishtha said, 'O sinful one! This milch cow Nandini stays with us for the worship of gods, guests and forefathers and for the offerings in yajnas. She cannot be given away even if we take away your kingdom.'
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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