श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 9: परम गुह्य ज्ञान » श्लोक 10 |
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| | श्लोक 9.10  | मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते सचराचरम् ।
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ॥ १० ॥ | | | अनुवाद | हे कुन्तीपुत्र! यह भौतिक प्रकृति, जो मेरी शक्तियों में से एक है, मेरे निर्देशन में कार्य करती है और समस्त चर और अचर प्राणियों को उत्पन्न करती है। इसके शासन में यह जगत बार-बार उत्पन्न और प्रलयित होता है। | | O son of Kunti! This material nature is one of my energies and functions under my supervision, from which all animate and inanimate beings are generated. Under its rule this universe is repeatedly created and destroyed. |
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