श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 8: भगवत्प्राप्ति » श्लोक 7 |
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| | श्लोक 8.7  | तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च ।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशय: ॥ ७ ॥ | | | अनुवाद | अतः हे अर्जुन! तुम सदैव कृष्ण के रूप में मेरा चिंतन करो और साथ ही युद्ध करने का अपना कर्तव्य भी करो। अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन और बुद्धि को मुझमें स्थिर करके, तुम निःसंदेह मुझे प्राप्त करोगे। | | Therefore, O Arjuna, you should always think of Me as Krishna and also perform the duty of fighting. By dedicating your actions to Me and fixing your mind and intellect on Me, you will certainly be able to attain Me. |
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