श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 8: भगवत्प्राप्ति » श्लोक 6 |
|
| | श्लोक 8.6  | यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् ।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावित: ॥ ६ ॥ | | | अनुवाद | हे कुन्तीपुत्र! शरीर त्यागते समय मनुष्य जिस भी अवस्था का स्मरण करता है, वह अवश्य ही उसी अवस्था को प्राप्त होता है। | | O son of Kunti! Whatever emotion a man thinks of while giving up his body, he certainly attains that emotion. |
| ✨ ai-generated | |
|
|