श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 7: भगवद्ज्ञान  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  7.8 
रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययो: ।
प्रणव: सर्ववेदेषु शब्द: खे पौरुषं नृषु ॥ ८ ॥
 
 
अनुवाद
हे कुन्तीपुत्र! मैं जल का स्वाद हूँ, सूर्य और चन्द्रमा का प्रकाश हूँ, वैदिक मन्त्रों में ॐ अक्षर हूँ, आकाश में शब्द और मनुष्य में सामर्थ्य हूँ।
 
O son of Kunti! I am the taste of water, the light of the sun and the moon, the Omkar in Vedic mantras, the sound in the sky and the power in man.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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