श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 7: भगवद्ज्ञान  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  7.3 
 
 
मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये ।
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वत: ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  कई हज़ार मनुष्यों में एक साधक सिद्धि के लिए प्रयत्न करता है, और उनमें से जो प्रयत्नशील होकर सिद्धि प्राप्त कर लेता है, उनमें भी विरले ही कोई है जो यह संस्कार करे कि मैं वास्तव में कौन हूँ।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.