श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 7: भगवद्ज्ञान  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  7.25 
 
 
नाहं प्रकाश: सर्वस्य योगमायासमावृत: ।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं कभी भी मूर्खों और मंदबुद्धि वालों के सामने प्रकट नहीं होता। उनके लिए मैं अपनी आंतरिक क्षमता से आच्छादित रहता हूँ, इसलिए वे यह नहीं जान पाते कि मैं अजन्मा और अविनाशी हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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