श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 7: भगवद्ज्ञान  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  7.22 
स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते ।
लभते च तत: कामान्मयैव विहितान्हि तान् ॥ २२ ॥
 
 
अनुवाद
ऐसी श्रद्धा से युक्त होकर वह किसी विशिष्ट देवता की पूजा करने का प्रयत्न करता है और अपनी मनोकामनाएँ प्राप्त करता है। किन्तु वास्तव में ये लाभ केवल मेरे द्वारा ही प्रदान किए जाते हैं।
 
With such devotion he tries to worship a particular deity and fulfill his desire. But the reality is that all these benefits are given by me only.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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