श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 7: भगवद्ज्ञान » श्लोक 14 |
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| | श्लोक 7.14  | दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया ।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ॥ १४ ॥ | | | अनुवाद | प्रकृति के तीन गुणों से युक्त मेरी यह दिव्य शक्ति पार करना कठिन है। किन्तु जो मेरी शरण में आ गए हैं, वे इसे आसानी से पार कर सकते हैं। | | It is difficult to cross this divine power of mine which consists of the three modes of nature. But those who surrender to me, cross it easily. |
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