श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 6: ध्यानयोग » श्लोक 5 |
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| | श्लोक 6.5  | उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् ।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन: ॥ ५ ॥ | | | अनुवाद | मनुष्य को अपने मन की सहायता से अपना उद्धार करना चाहिए, न कि स्वयं को नीचा दिखाना चाहिए। मन बद्धजीव का मित्र भी है और शत्रु भी। | | A man should uplift himself with the help of his mind and not allow himself to fall down. This mind is both a friend and an enemy of the conditioned soul. |
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