वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भगवद्-गीता
»
अध्याय 6: ध्यानयोग
»
श्लोक 41
श्लोक
6.41
प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वती: समा: ।
शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते ॥ ४१ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
असफल योगी पवित्र आत्मा वाले ग्रहों पर कई-कई वर्षों तक भोग-विलास करने के पश्चात् या तो सदाचारियों के कुल में जन्म लेता है अथवा धनवानों के कुल में जन्म लेता है।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.