श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 6: ध्यानयोग  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  6.30 
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति ।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥ ३० ॥
 
 
अनुवाद
जो मुझे सर्वत्र देखता है और मुझमें ही सब कुछ देखता है, उसके लिए मैं कभी लुप्त नहीं होता, न ही वह मुझसे कभी लुप्त होता है।
 
For the one who sees me everywhere and sees everything in me, neither am I ever invisible to him nor is he invisible to me.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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