श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 6: ध्यानयोग » श्लोक 18 |
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| | श्लोक 6.18  | यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते ।
निस्पृह: सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा ॥ १८ ॥ | | | अनुवाद | जब योगी योगाभ्यास द्वारा अपनी मानसिक गतिविधियों को नियंत्रित कर लेता है और सभी भौतिक इच्छाओं से रहित होकर परात्परता में स्थित हो जाता है, तब उसे योग में सुप्रतिष्ठित कहा जाता है। | | When a yogi controls his mental activities through yoga practice and becomes situated in spirituality i.e. becomes devoid of all material desires, then he is said to be well-settled in yoga. |
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