श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 6: ध्यानयोग » श्लोक 15 |
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| | श्लोक 6.15  | युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानस: ।
शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति ॥ १५ ॥ | | | अनुवाद | इस प्रकार शरीर, मन तथा कर्मों पर निरन्तर नियंत्रण रखते हुए, मन को नियंत्रित करने वाला योगी योगी, भौतिक अस्तित्व का अंत करके भगवान के धाम [या कृष्ण के धाम] को प्राप्त करता है। | | Thus, by continuously practicing restraint in body, mind and actions, a yogi with a controlled mind attains the abode of God at the end of this material existence. |
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