श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 6: ध्यानयोग  »  श्लोक 13-14
 
 
श्लोक  6.13-14 
 
 
समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिर: ।
सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन् ॥ १३ ॥
प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थित: ।
मन: संयम्य मच्च‍ित्तो युक्त आसीत मत्पर: ॥ १४ ॥
 
अनुवाद
 
  योगाभ्यास करने वाले को अपना शरीर, गर्दन और सिर सीधा रखना चाहिए और दृष्टि नाक के अगले सिरे पर लगाना चाहिए। इस तरह मन को शांत और स्थिर रखकर, भय से मुक्त होकर और काम-वासना से दूर रहकर हृदय में मेरा ध्यान करें और मुझे ही जीवन का परम लक्ष्य बनाएँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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