श्रीभगवानुवाच
अनाश्रित: कर्मफलं कार्यं कर्म करोति य: ।
स सन्न्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रिय: ॥ १ ॥
अनुवाद
भगवान बोले - जो व्यक्ति अपने कर्मों के फलों से अन-आसक्त होता है और अपने कर्तव्य को निभाता है, वही सच्चा संन्यासी और योगी है। न वो जो ना आग जलाता है और ना ही कर्म करता है।