योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रिय: ।
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते ॥ ७ ॥
अनुवाद
भक्तिभाव से काम करने वाला, पवित्र आत्मा वाला और मन-इंद्रियों को वश में रखने वाला व्यक्ति सबको प्रिय होता है और सब उसे प्रिय होते हैं। ऐसा व्यक्ति काम करते हुए भी नहीं बँधता।