सन्न्यासस्तु महाबाहो दु:खमाप्तुमयोगत: ।
योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म न चिरेणाधिगच्छति ॥ ६ ॥
अनुवाद
केवल सभी कर्मों का त्याग करने से ही मनुष्य सुखी नहीं हो सकता, यदि वह भगवान की भक्ति में लीन न हो। परन्तु विचारशील व्यक्ति भक्ति में लगा हुआ होने से शीघ्र ही परमेश्वर को प्राप्त कर लेता है।