श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 5: कर्मयोग  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  5.6 
सन्न्यासस्तु महाबाहो दु:खमाप्‍तुमयोगत: ।
योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म न चिरेणाधिगच्छति ॥ ६ ॥
 
 
अनुवाद
केवल समस्त कर्मों का त्याग करके भगवान की भक्ति में न लगना ही मनुष्य को सुख नहीं दे सकता। किन्तु भक्ति में लगा हुआ विचारशील व्यक्ति बिना विलम्ब के ही परब्रह्म को प्राप्त कर सकता है।
 
One cannot become happy by merely abandoning all actions without engaging in devotion. But a thoughtful person engaged in devotion soon attains God.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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