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श्लोक 5.6  |
सन्न्यासस्तु महाबाहो दु:खमाप्तुमयोगत: ।
योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म न चिरेणाधिगच्छति ॥ ६ ॥ |
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अनुवाद |
केवल समस्त कर्मों का त्याग करके भगवान की भक्ति में न लगना ही मनुष्य को सुख नहीं दे सकता। किन्तु भक्ति में लगा हुआ विचारशील व्यक्ति बिना विलम्ब के ही परब्रह्म को प्राप्त कर सकता है। |
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One cannot become happy by merely abandoning all actions without engaging in devotion. But a thoughtful person engaged in devotion soon attains God. |
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