|
|
|
श्लोक 5.29  |
भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् ।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥ २९ ॥ |
|
|
अनुवाद |
जो व्यक्ति मुझमें पूर्ण चेतना रखता है, वह मुझे समस्त यज्ञों और तपस्याओं का परम लाभार्थी, समस्त लोकों और देवताओं का परमेश्वर तथा समस्त जीवों का उपकारक और शुभचिंतक जानकर भौतिक दुखों से शांति प्राप्त करता है। |
|
Knowing Me as the ultimate enjoyer of all sacrifices and austerities, the Supreme Lord of all the worlds and gods, the benefactor and well-wisher of all living beings, a man filled with the nectar of My thoughts gains peace from material suffering. |
|
इस प्रकार श्रीमद् भगवद्-गीता के अंतर्गत पाँचवाँ अध्याय समाप्त होता है । |
|
|
✨ ai-generated |
|
|