श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 5: कर्मयोग » श्लोक 26 |
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| | श्लोक 5.26  | कामक्रोधविमुक्तानां यतीनां यतचेतसाम् ।
अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम् ॥ २६ ॥ | | | अनुवाद | जो लोग क्रोध तथा समस्त भौतिक इच्छाओं से मुक्त हैं, जो आत्म-सिद्ध, आत्म-अनुशासित तथा सिद्धि के लिए निरंतर प्रयत्नशील हैं, उन्हें निकट भविष्य में परम भगवान में मुक्ति अवश्य प्राप्त होगी। | | Those who are free from anger and all material desires, who are self-realized, self-controlled and who constantly strive for perfection, their liberation is assured in the near future. |
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