तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणा: ।
गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषा: ॥ १७ ॥
अनुवाद
जब मनुष्य की बुद्धी, मन, श्रद्धा और शरण पूरी तरह से भगवान में स्थिर हो जाती है, तब उसे सम्पूर्ण ज्ञान मिलता है जिससे उसके सभी संदेह दूर हो जाते हैं और वो मुक्ति के मार्ग पर अग्रसर होता है।