श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 5: कर्मयोग  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  5.17 
 
 
तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणा: ।
गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषा: ॥ १७ ॥
 
अनुवाद
 
  जब मनुष्य की बुद्धी, मन, श्रद्धा और शरण पूरी तरह से भगवान में स्थिर हो जाती है, तब उसे सम्पूर्ण ज्ञान मिलता है जिससे उसके सभी संदेह दूर हो जाते हैं और वो मुक्ति के मार्ग पर अग्रसर होता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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