श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 5: कर्मयोग  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  5.13 
 
 
सर्वकर्माणि मनसा सन्न्यस्यास्ते सुखं वशी ।
नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन् ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  जब देहधारी आत्मा अपनी मूल प्रवृत्ति को नियंत्रित कर लेती है और मानसिक रूप से सभी कार्यों का त्याग कर देती है, तब वह नौ द्वारों वाले शहर (भौतिक शरीर) में बिना किसी काम को किये या करवाये खुशी से रहती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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