अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन् ।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया ॥ ६ ॥
अनुवाद
यद्यपि मैं अजन्मा हूँ और मेरा दिव्य स्वरूप कभी क्षय नहीं होता, और यद्यपि मैं समस्त जीवों का स्वामी हूँ, फिर भी मैं प्रत्येक युग में अपने मूल दिव्य स्वरूप में प्रकट होता हूँ।