श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 4: दिव्य ज्ञान  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  4.5 
 
 
श्रीभगवानुवाच
बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन ।
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान श्री कृष्ण ने कहा - हे अर्जुन! तुम्हारे और मेरे अनेकों जन्म हो चुके हैं। मुझे तो उन सबका स्मरण है, परंतु हे शत्रुओं के नाश करने वाले! तुम्हें उनका स्मरण नहीं रह सकता।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.