श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 4: दिव्य ज्ञान  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  4.25 
 
 
दैवमेवापरे यज्ञं योगिनः पर्युपासते ।
ब्रह्माग्न‍ावपरे यज्ञं यज्ञेनैवोपजुह्वति ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  कुछ योगीगण विशिष्ट प्रकार के यज्ञों से देवतागणों की श्रद्धापूर्वक पूजा करते हैं, जबकि कुछ प्रभु परमात्मा के अग्नि-तत्व में आहुतियाँ अर्पित करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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